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पानी की कुँजी / ओक्ताविओ पाज़ / उज्ज्वल भट्टाचार्य
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ऋषिकेश के बाद
गँगा अभी भी हरी है।
शीशे-सा दिगन्त
शिखरों के बीच टूटकर बिखर जाता है ।
बिल्लौर के बीच हम टहलते हैं ।
ऊपर और नीचे
शान्ति ही शान्ति ।
नीले आसमान में
सफ़ेद पत्थर, काले बादल
तुम कहती हो :
Le pays est plein de sources<ref>यह देश सोतों से भरपूर है। मूल कविता में यह पँक्ति स्पेनिश में नहीं, बल्कि फ़्रांसीसी में है।</ref>.
उस रात डुबो दी मैंने अपनी हथेलियाँ तुम्हारे सीने में ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य
शब्दार्थ
<references/>