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पानी पर चलते / मोहन राणा
Kavita Kosh से
आकाश को ताकते
मैं नज़र रखे हूँ
मौसम पर
दोपहर के मूड पर
बिल्कुल सावधान
एकटक
अपलक निश्वास
चिड़ियाँ मुझे लहरों पर डगमगाता कोई पुतला समझती हैं
समय मिटा चुका है मुस्कराहट मेरे चेहरे से,
एक आएगी कोई लहर कहीं से
ले जाएगी मुझे किसी और किनारे पर
और मैं भूल भी चुका यह हुआ कब
या सपना तो नहीं मैं देखता
तट पर सोई उन्मीलित नीली आँखों का
13.4.08