भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पानी / असद ज़ैदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब तक में इसे जल न कहूँ
मुझे इसकी कल-कल सुनाई नहीं देती
मेरी चुटिया इससे भीगती नहीं
मेरे लोटे में भरा रहता है अन्धकार

पाणिनी भी इसे जल कहते थे
पानी नहीं

कालान्तर में इसे पानी कहा जाने लगा
रघुवीर सहाय जैसे कवि
उठकर बोलेः
"पानी नहीं दिया तो समझो
हमको बानी नहीं दिया।"

सही कहा - पानी में बानी कहाँ
वह जो जल में है।