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पानी / चिन्तामणि जोशी
Kavita Kosh से
गजब ताकत है
पानी में
बूँदों से नाला
नाले से दरिया
दरिया से सागर
सागर से बादल
बादल से बूँदों में
बदलता है
बीजों को पौधों
पौधों को वृक्षों
कलियों को पुष्पों
पुष्पों को फल-फसल
फसलों को सरस व्यंजन में
बदलता है
पानी से
जीवन चलता है
धुंध है
व्यवस्था विद्रूप है
आँखें फटीं हैं
पानी भर चुका है
अब रहने भी दे
तू नहीं दिखा पाएगा राह
ए खैरख्वाह
तेरी आँखों का
पानी मर चुका है।