भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पानी / श्रीनाथ सिंह
Kavita Kosh से
बादल है पानी की माया।
सागर है पानी की काया।
नदी और तालाब निराले।
गये सभी पानी से ढाले।
पानी में हम नाव चलाते,
पानी में हम रोज नहाते,
पानी में हम पाते मोती,
पानी से ही खेती होती।
पानी में लकड़ी बहती है,
पानी में मछली रहती है,
पानी ही से है हरियाली,
पानी है ईश्वर का माली।
पानी लाओ - पानी लाओ,
प्यास लगी है पानी लाओ।
ठंडा पानी पीता हूँ मैं,
पानी के बल जीता हूँ मैं।
पानी तो है बड़े काम का,
फिर भी मिलता बिना दाम का
ऐसे ही होते वे बच्चे,
जो जग के हैं सेवक सच्चे।