पायल आरो मठिया / नवीन ठाकुर
एक दिन घरनी बोललै,बौधा बाप जा हटिया,
हम्में कहलियै कमरोॅ में दरद छै, केना जैबोॅ बोकिया।
हुन्हीं बिगड़ी केॅ बोढ़नी सें, मारलकै पहिलें,
हम्मूँ झोॅटोॅ पकड़ी केॅ दू चार थाप देलां।
कहलकी मुँझौंसा चुलफुक्का चललियोॅ थाना,
हम्में गोड़ पकड़ी केॅ खूब करलियै मना।
आभरी तोरा देखैबोॅ जेलोॅ रोॅ बटिया,
एक दिन घरनी बोललै, बौधा बाप जा हटिया।
बीबी दरोगा बाबू लेॅ करलकोॅ केस,
अबकी लाज इज्जत नै बचतोॅ शेश।
दरोगा बाबू ने दून्हूँ के खूब डॉटलकोॅ,
हमरा सिनी रोॅ दुःख आधोॅ-आधोॅ बाँटलकोॅ।
जाय आबै में खरच होलोॅ सौ टकिया,
एक दिन घरनी बोललै,बौधा बाप जा हटिया।
हीनें हुन्नें देखी केॅ दरोगा बाबू बोललोॅ फूस-फूस,
हम्में कहलियै, दरमाहा नै मिलै छौं, मांगै छोॅ घूस?
हुनी डाँटी केॅ करलकोॅ चुप-चुप,
थाना आबै रोॅ मिललोॅ दःुख-सुख।
‘‘संधि’’ बेची केॅ घूस देलकोॅ पायल आरो मठिया।
एक दिन घरनी बोललै, बौधा बाप जा हटिया।