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पाराशर झील का पहाड़ / कुमार कृष्ण

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शायद इसी जगह मिली होगी पहली बार
पुरुरवा को उर्वशी
पाराशर झील के किनारे
यही वह जगह है जहाँ-
सबसे आसान है आसमान से छलाँग लगाना
यह है देवताओं का हैलीपैड
तपश्चर्या की धरती
गड़रियों की पांथशाला

बर्फ की चादर में लिपटी
रुंड-मुंड धरती
कर रही है इन्तज़ार-
गूजर-गूजरियों के आने का
पाराशर ऋषि के मन्दिर की रखवाली में
गुज़र गयीं अनेक सदियाँ
आज भी गुनगुनाता है पुजारी
दादा-परदादा के मन्त्र
उसने नहीं देखा कभी हस्तिनापुर
नहीं देखी कभी रेलगाड़ी
उसे नहीं मिला कभी किसी स्कूल जाने का अवसर
मन्दिर की घंटियाँ बजाते
मन-ही-मन करता है याचना-
उसके बच्चे सीखें वर्णमाला
चले जाएँ-
नगाड़ो की, घंटियों की आवाज़ से दूर।