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पारू झूठ नि बोल / लोकेश नवानी
Kavita Kosh से
पारू झूठ न बोल हे पारू झूठ न बोल।
प्रेम बिना क्वी रै नि अछूतो घिंडुड़ि बणांदी घोल।।
बाच न सान न चुप-चुप हेरिकि आंख्यूं से ना बोल।
जिकुड़ि म फूल खिलिन तेरा बी खुशबू स्या अनमोल।।
परी आंछरी देवि अप्सरा सब छन एक हि तोल।
तितर मिरग मन घ्वीड़ मल्यो तन एक सि माया कि टोल।।
सौंण भितर बोगणू च अथा स्यो मन ह्वे डांवाडोल।
भितर कतग रसदार च माया छोरि बगोट त चोल।।
मन करणू छौ जोगी ह्वे जौं माया लगैगी जोल ।
दिन राती सुपिनौं मा ऐकी निंद नि मेरि पिरोल ।
भभगलि आग बचीं च छोरी सुदि नि रंगणु खरोल ।
जै दिन धरती-सरग मिलीनी बजिनि जिकुड़ि मा ढोल।
दुनिया देखण त द्वार उगाड़ तु जिकुड़ी का पट खोल।।
कैक दगड़ अब सैक नि सकदू जतग बोनै तिन बोल।