भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पार्श्व में नगाड़े बजते हैं / विहाग वैभव
Kavita Kosh से
यह लोहार की भट्ठियों में काम कहाँ से आया
यह शमशीरों के खनकने की आवाज़ कैसी है
जो बूढ़े किसान सरकार की गोली खाकर मरे
आखिर कहाँ गए एक साथ उनके जवान लड़के
वह अधेड़ आदमी
अपनी बूढ़ी बन्दूक को तेल क्यों पिला रहा
प्रदर्शन के लिए रखी तोपों का बदन
आख़िर टूटता है क्योंकर
तीरों पर लगा ज़ंग क्यों छूटता है आज की शाम
ये कुछ औरतें क्यों ख़रीद रही हैं एक साथ
कफ़न और शौर्य के सामान
जाने तो क्या हुआ है आज कि
सभी हलों के फार
पिघल कर खंजरों में ढल रहे हैं
इस दौर में मैं एक साथ
उत्साह और भय से भरा हुआ हूँ
कोई बताएगा
सभी हिनहिनाते हुए घोड़ो का मुँह
देश की राजधानी की तरफ क्यों है ?