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पाळसिया / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
दरखत तो दरखत ई हुवै
पतझड़ हुवै
डाळ्यां सूनी हुवै
चिड़कल्यां नीं सरमावै
बातां करै, चांय-चांय करती
तिरस बुझावै
सूकी डाळ्यां बैठ
पाळसियां सूं।
काळी-पीळी आंधियां
सांय-सांय करती टैम
बैठी बिदक जावै
पाळसियै रै च्यारूंमेर
नीं हुवै हरै पत्तां रो सुख
सूकी डाळ्यां सुख देवै
पाळसिया हुवणै सूं।
इंदर राजा!
नीं बरसै तो ना बरस
छपक-छपक करती
हींडा हींडै चिड़कल्यां
तिरस बुझावै
नीं हुवै गरमी रो अैसास
पाळसिया हुवणै सूं।