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पावस-गीत / नील कुसुम / रामधारी सिंह "दिनकर"

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अम्बर के गृह गान रे, घन-पाहुन आये।
इन्द्रधनुष मेचक-रुचि-हारी,
पीत वर्ण दामिनि-द्युति न्यारी,
प्रिय की छवि पहचान रे, नीलम घन छाये।
वृष्टि-विकल घन का गुरु गर्जन,
बूँद-बूँद में स्वप्न विसर्जन,
वारिद सुकवि समान रे, बरसे कल पाये।
तृण, तरु, लता, कुसुम पर सोई,
बजने लगी सजल सुधि कोई,
सुन-सुन आकुल प्राण रे, लोचन भर आये।

रचनाकाल १९४७ ई०