अपने ही बादलों से नहाती हुई धरती पर
जिस लड़के का कोई नाम नहीं था पाषाणकाल में
वह अब मेरा भतीजा है
उससे मैंने पूछा कि संवत्सर ! क्या बजा?
धीरे से उसने कहा सात पैंतीस
और फिर जोर से चिल्ला पड़ा
नहीं चाचा। छः पैंतीस
इस प्रकार ठीक एक घंटा बच जाने के बाद
नील नदी से सिंधु नदी के बीच
मुझे कहीं जाना था शायद दर्जी के यहाँ
या वहाँ जहाँ कहीं कीमतों में भारी छूट की घोषणा थी
पेड़ की खाल खींचते खींचते जब पशुओं की खींचने लगा था
उत्तरपाषाण काल में
तब जो नंगा आदमी नदी तट की गुफा में
आग के प्रथम दर्शन से मरा था वह अब दर्जी है
मगर माचिस मोमबत्तियाँ और ढिबरी भी बेचता है
बाल की खाल से पता चला कि पाषाणकाल का
घनिष्ठ दोस्त धातु काल में मेरी हजामत बना रहा है
और मैं उसका ग्राहक हूँ
खाल की जगह अब मेरे पास एक कपड़े का टुकड़ा था
जिसकी मुझे आधुनिक काल में कमीज सिलवानी थी
मैंने मन ही मन कमीज के कपड़े को इतना ताना इतना
कि कम से कम एक रूमाल तो मजे से निकल आना चाहिए
एक में दो दो खुशियाँ लेनी जरूरी थीं अत्याधुनिक काल में
अगर रूमाल जरूरी हो दर्जी ने कहा
तो आप इसका अंडरवीयर बनवायें
तब भी आपके पास दो चीजें होंगी
(पर वे दो नहीं जो आप चाहते हैं
बल्कि वे दो जो इसमें बन सकती हैं)
इस तरह मुझे कमी में से अपनी खुशियाँ खोजनी थी
इसीलिए दूर करने के बजाय मैं कमी बढ़ा रहा था
एक कमीज के लिए उस कपड़े में कोई कमी नहीं थी
समय में समय की कमी की तरह थी
कमीज के कपड़े में रूमाल की कमी
तभी मेरा भतीजा संवत्सर आया
चाचा अब सात पैंतीस बजे हैं बताया
सोच रहा हूँ कि मैंने आज क्या बचाया
मनोबल? समय? रूमाल? या उत्तर आधुनिक काल?