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पास हमारे / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
अपनेपन की
सोंधी खुशबू
पास हमारे है
मेरे घर का
मंदिर होना
जिसमें देव रहें
नई पुरानी नेह कथाएँ
मिलकर लोग कहें
आखर –आखर
ऋचा प्रेम की
पास हमारे है
सुख-दुख सारे
मिलकर घर ने
साथ-साथ ढोये
पूरे घर ने
बीज प्यार के
मिलजुल कर बोये
क्यारी-क्यारी
नई पौध अब
पास हमारे है
हँसते फूलों
की किलकारी
घर भर में पसरी
सुबह शाम
तक रहें महकते
घर आँगन देहरी
कर्म, त्याग की
नेह कथा भी
पास हमारे है