भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाहुन / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बना बना कर चित्र सलौने
यह सूना आकाश सजाया
राग दिखाया
क्षण-क्षण छबि में चित्त चुराया
बदल चले गए वे

आसमान जब नीला-नीला
एक रंग रस श्याम सजीला
धरती पीली हरी रसीली
शिशिर -प्रभात समुज्ज्वल गीला
बदल चले गए वे

दो दिन दुःख का दो दिन सुख का
दुःख सुख दोनों संगी जग में
कभी हास है अभी अश्रु हैं
जीवन नवल तरंगी जग में
बदल चले गए वे
दो दिन पाहुन जैसे रह कर ।