पिच्छम‘र पूरब!/ कन्हैया लाल सेठिया

लड़ाई कुदरत स्यूं
सभ्यता पिच्छम री,
भेळप सभ्यता
पूरब री,
सूरज जठै निमळो
चाहीजै बां ने
आंख रो उजास,
जठै सबळो
बां ने आतमा रो परकाश,
पिच्छम री जिनगानी
सासतो भाजणै री एक होड़,
पूरब री
थम‘र सोचणै री एक मोड़
अतै‘क फरक स्यूं
पिच्छम में जलमै जुद्ध
पूरब में बुद्ध !

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