भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पिछली सदी की दलदल पर / मनोज छाबड़ा
Kavita Kosh से
पिछली सदी की दलदल पर
जब मैं
इस सदी की चौखट पर खड़ा होकर
फेंकता हूँ पत्थर
तब सारी दिशाओं के चेहरों पर
छींटे गिरते हैं
उधर
आने वाली सदी
अपनी निर्मलता के प्रमाण जुटाने लगती है