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पिता का मकान / पवन करण
Kavita Kosh से
मैं आपसे साफ़ कहूँ
मैं पिता के साथ
उनके परिवार में रहता हूँ
उनके मकान में नहीं
मुझे ये बात तिलमिला देती है
जब कोई कहता है
इकलौते लड़के हो
जो कुछ भी है पिता का
सब तुम्हारा ही तो है
पिता का मकान मुझे
अपने मकान की तरह नहीं लगता
जो अपनी ज़िन्दगी में
अपने हाथों एक बार
अपना घोंसला ज़रूर बनाता है
मैं उस पक्षी की तरह हूँ