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पिता के लिए / अजित सिंह तोमर

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संयोग से उस दौर में
मेरा जन्म हुआ
जहाँ पिता पुत्र के अंतर्द्वन्द बेहद गहरे थे
समाज तब करवट ले रहा था
मेरे से पूर्ववर्ती पीढ़ी
विचार और संवेदना के स्तर पर नही थी
इस किस्म की विद्रोही

हम नालायक थे
वो रही थी अपेक्षाकृत आज्ञाकारी

मेरा विद्रोह किसी क्रांति के निमित्त न था
ये काफी हद तक भावनात्मक रहा
कुछ कुछ वैसा ही
जैसा सबको रहती है शिकायत कि
पिता उन्हें ठीक से समझ नही पाए
मगर
एक ईमानदार सवाल यह भी है
क्या हम ठीक से समझ पाए पिता को

ऐसा क्यों हुआ हमारा अस्तित्व ही
चुनौति बन गया उनके लिए
हमारे मुद्दें भिन्न थे तर्क भिन्न थे
एकदम अलग थी दुनिया
मगर अक्सर बहस क्यों रही एकतरफा

पिता के साथ क्यों नही विकसित हो पाया
हमारा लोकतांत्रिक रिश्ता
दोनों के हिस्से में आती रही हमेशा
थोड़ी जिद थोड़ी परेशानी

एक चूके हुए समय में
पिता पुत्र का साथ होना था बेहद जटिल
आदर की कल्पनाओं के साथ बनता रहा
असहमतियों का पहाड़

पिता कुछ इस तरह उपस्थित रहें हमारे जीवन में
जैसे कुँए में रस्सी
हम पिता की अपेक्षाओं से नही
खुद के असंतुलन से होते रहे सहज
नही समझ पाए
प्यार का होता है एक गैर बौद्घिक संस्करण भी

पिता के जीते जी
हमारे कन्धे जुते रहें खुद के यथार्थ को जोतने में
हमें उम्मीद थी कि हम पैदा करेंगे कुछ नया
जिसे देख विस्मय से चुप हो जाएंगे पिता

और जब एकदिन पिता चुप हो गए हमेशा के लिए

हमनें पाया सारी ज़मीन बंजर थी
जिसे जोत रहे थे हम बेतुके उत्साह के साथ

हम उस दौर के पुत्र है
जो अपने पिता के पिता बननें की फिराक में थे
मगर साबित हुए
खुद एक औसत पिता

दरअसल, पिता होना इतना आसान नही था
ये बात तब समझ में आई
जब पिता नही थे,पिता की कुछ स्मृतियाँ थी
जो रोज़ हँसती थी हमारे एकांत पर
जो रोज़ रोती थी हमारी मजबूरियों पर

पिता मजबूरी के प्रतीक नही थे
हमनें उनको बनाया ऐसा
भले ही हमारा मन्तव्य उनको छोटा करना नही था
मगर सच तो ये भी है
तमाम समझदारी के दावों के बीच
हम नही नाप पाए अपने ही पिता का कद।