भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पिया ऐलै हेमन्त-1 / ऋतुरंग / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
पिया ऐलै हेमन्त।
आशिन के रौदो बुझावै छै सन्त
पिया ऐलै हेमन्त।
छूवी हिमाला केॅ धूप चली आवै
कुच्छु कनकन्नोॅ रङ देह छै बुझावै
खाड़ोॅ अगुआनी में छै दै केॅ तन्त
पिया ऐलै हेमन्त।
देखीकेॅ रूप मधुर कठुवैलै मोरो
आबेॅ सें कुकतै की कोयल कुछ थोरो
भौरा केॅ लागलोॅ छै होॅ सें हलन्त
पिया ऐलै हेमन्त।
त्रेता रोॅ रामे रङ लागै मुँठौनोॅ
द्वापर के कृष्ण रहेॅ भ्रम हुव होनोॅ
कलयुग के ठिक्के सुमित्रानन पन्त
पिया ऐलै हेमन्त।
-8.11.95