भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिया के जुदाई / सुभाष चंद "रसिया"

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पिया के जुदाई अब हमें ना सहाला।
लागेला सेजरिया जइसे चुभेला भाला॥

बिच्छूआ के डंक जइसे लागे पुरुवाई।
धधकता आग कइसे भीतरी बुझाई।
कोयल के बोली सुनके जिया घबराला॥
पिया के जुदाई अब हमें ना सहाला॥

कवन चूक कइली भाग गइली छोड़के।
विरही बनके गइली हमसे मुँह मोड़के।
एक-एक दिन हमके बरसो बुझाला॥
पिया के जुदाई अब हमें ना सहाला॥

सात फेरा घूम के हमके भूल गइल।
कवन कसूर बाटे कैसे तेज दिहल।
जियल मुहल भईल कुछ ना सहाला॥
पिया के जुदाई अब हमें ना सहाला॥

पाती लेके जईह कागा पियवा के देस में।
विरह के बतिया सुनाइह उनके सनेश में।
रसिया बलम जी कुछ ना बुझाला॥
पिया के जुदाई अब हमें ना सहाला।