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पिया के प्रीत / नवीन निकुंज
Kavita Kosh से
याद मेॅ ऐलै जे तोरोॅ सुरतिया
गीत बनी बहलै सौन के पुरवैया
कि उड़ी गेलै, प्रीतम उड़ी गेलै
हमरोॅ धानी रे चुनरिया ।
केना समझैवै ई पागल मन केॅ
केना संभालौं चंचल मन केॅ
कि खुली गेलै प्रीतम खुली गेलै
हमरोॅ लाज के गठरिया ।
अंग-अंग बोलै छै तोरे पिरितिया
तोरे मुस्कानोॅ सेॅ जलै हमरोॅ जोतिया
कि बजी गेलै, प्रीतम बजी गेलै
हमरोॅ देह के बाँसुरिया ।
प्रेम-रथ चढ़ी ऐलै जे साँवरिया
शीतल होलै जेठोॅ के दुपहरिया
कि अमावस भेलै, कि अमावस भेलै
हमरोॅ ठहाका इन्जोरिया ।
लारोॅ सेॅ भरलै हमरोॅ गगरिया
पूछै छै रही-रही सखिया सहेलिया
की पनघट ऐलै, की पनघट ऐलै
सखि हमरोॅ दुअरिया ।