भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिया तूं न्यारा मैं न्यारी, खड़ी रात नै पहरे पै सब सोवैं नरनारी / मेहर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बादल गरजै, बिजल पाटै, तृष्णा बैरण चित नै चाटै
पिया तूं न्यारा मैं न्यारी, खड़ी रात नै पहरे पै सब सोवैं नरनारी।टेक

राजबाला खड़ी पहरै पै, राणी आराम करै
मेरा जी जीवतां मरै, सांस किसे सबर के भरै
धरै तूं परमेश्वर म्हं ध्यान, सजन मैं होरी सूं गलतान
हाथ म्हं ले रही तेग दुधारी।

सामण का महीना पिया जी बादल छा गये
देख बरसणा नै आ गये
घटा तलै बुगले नहां गये
हम आ गये करमां के निरभाग, कितै सुता हो तै जाग
बोल रही तेरे दिल की प्यारी।

ठण्डी पड़ै फ्वार पिया बिन सामण हो कैसा
नारंगी दामण हो कैसा, ज्ञान बिन बामण हो कैसा
जिसा पशुओं के म्हं ढोर उठरी बागां के मैं लौर
दया करौ कृष्ण मुरारी।

प्राण पियारे पिया तेरी टहल म्हं रहूं
सेवा पहल मैं रहूं, मेहर सिंह तेरी गैल मैं रहूं
सहूंगी दुख सारे मैं रहकै तेरे चरणों की दासी
जिन्दगी काटूंगी सारी।