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पिया बिनु कैसे प्रान रहें / स्वामी सनातनदेव
Kavita Kosh से
राग विहागरा, तीन ताल 16.9.1974
पिया बिनु कैसे प्रान रहें।
प्रीतम को दुःसह वियोग ये कैसे हाय! सहें॥
मेरे प्राननाथ मनमोहन मोसों विलग रहें।
उन बिनु और कहो को ऐसो अपनो जाहि कहें॥1॥
अपने विनु अवलम्ब और को जाकी आस गहें।
यासों निराधार ह्वै अब ये कबलाैं जियत रहें॥2॥
अटके प्रान प्रान-प्रीतम में, उनकी सरन गहें।
याहीसों अब लौं तनु में रह दुःसह विरह सहें॥3॥
अब तो होत न सहन विरह यह, पल-पल विकल रहें।
पंजरबद्ध कीरवत् परबस कासो पीर कहें॥4॥
आओ प्रान जुड़ाओ प्यारे! दिन-दिन दाव दहें।
दुसह भयो यह दास बिवस ह्वै तुम बिनु जीव जहंे॥5॥