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पीकर मेरा पसीना ये होने लगी हसीन / बल्ली सिंह चीमा

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पीकर मेरा पसीना ये होने लगी हसीन ।
मौसम के साथ तेवर बदलती है ये ज़मीन ।

पूँजी और गन के करतब चुनावों में देख लो,
संसद है इक तमाशा और हम हैं तमाशबीन ।

सीने पे चढ़ के बैठे हैं अब साँप देखिए,
बदनाम है बेचारा न जाने क्यों आस्तीन ।

क्या ये भी है करिश्मा कभी सोचता हूँ मैं,
चालक मशीन का क्यों ख़ुद बन गया मशीन ।

आधी सदी में घर को जो रौशन न कर सके,
आगे वो कुछ करेंगे ये कैसे करूँ यक़ीन ।