पीठिका में शिव-प्रतिमा की भाँति मेरे हृदय की परिधि में तुम्हारा अटल आसन है। मैं स्वयं एक निरर्थक आकार हूँ, किन्तु तुम्हारे स्पर्श से मैं पूज्य हो जाती हूँ क्योंकि तुम्हारे चरणों का अमृत मेरे शरीर में संचारित होता है। 1935