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पीठ / महेश वर्मा

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अनंत क़दमों भर सामने के विस्तार की ओर से नहीं
पीठ की ओर से ही दिखता हूँ मैं हमेशा जाता हुआ

जाते हुए मेरी पीठ के दृश्य में
पूर्वजों का जाना दिखता है क्या ?

तीन क़दमों में तीन लोक नापने की कथा
रखी हुई है कहीं, पुराने घर के ताख़े में
निर्वासन के तीन खुले विकल्पों में से चुनकर
अपना निर्विकल्प,
अब मैं ही था सुनने को
निर्वासन का मंद्रराग

यदि धूप और दूरियों की बात न करें हम
जाता हुआ मैं सुंदर दिखता हूँ ना ?