दर्द को मुठ्ठी में कैद कर उसके फलसफे का पाठ
फिर चार- पांच दिन अपने हाल पर जीना
अपने तरीके से जूझना
अभ्यास करना
सहजता से चाक-चौबंद रहने के लिए
और सजगता भी ऐसी जो
धूनी की तरह सिर से पाँव तक अपना पसारा जमा ले
पीड़ा को अपनी गोदी में सुलाने के ये दिन
पीड़ा जो पीठ की तरफ से आती
या कभी तलवे से उठान भरती
हर बार दर्द का चेहरा बहुत अलग होता है
हर बार उससे जूझने का तरीका वही
हर दिलासा का दूत एक तरफ से आया
नज़दीक आये बिना पल में हवा हो गया
मानीखेज़ चीजें गोल दिशा में डूब कर आयी
दुःख, प्रेम, ख़ुशी
फिर ख़ुशी, प्रेम, दुःख
सात राग बारी बारी से जीवन में आये
पर चार दिन वाली इस सनातन पीड़ा
ने चारों दिशाओं से अपनी बर्छियां चलायी
महीनें के इन चार दिनों वाली अबूझ पहेली से पहले पहल
परिचय विज्ञान की कक्षा ने करवाया
जब सर झुकाए
मिस लीला को सुनाते और
सोचते,
‘क्या ही अच्छा होता
कि आज कक्षा में बैठे ये सारे के सारे लडके लोप हो जाते’
फिर एक दिन स्वयं साक्षात्कार हुआ
कई हिदायतों से बचते बचाते
सिर छुपाते
कहर के पंजों के लडते रहने वाले इन दिनों से
खुदा, खुद
औरत की जुर्रत से भय खाता था
सो औरत को औरत ही बनाए रखने की यह जुगत उसकी थी
हम औरतों के ये चार दिन अपनी देह की प्रकृति से लडते बीतते
तभी जाकर एक जंगली खुनी समुंदर को अपने भीतर जगह देने का साहस
इस आधी आबादी के नाम पर लिखा जा सका
इन चार दिनों में औरत का चेहरा भी
हव्वा का चेहरा के बिलकुल करीब आ जाता है
हालाँकि हव्वा भी अब बूढ़ी हो गयी है
इस चार दिनों वाली परेशानी से जूझने वालेउसके दिन अब लद गए हैं
इन्हीं भावज दिनों में अपनी भावनाओं को खोलने के लिए
किसी चाबी का सहारा लेना पड़ता है
कभी ना कभी हर औरत कह उठती है
’माहिलाओं के साथ इस व्यवाहरिक मजाक को क्यों अंजाम दिया गया’
फिर एक मुस्कुराते बच्चे की तस्वीर को देख कर
खुद ही वह अपनी सोच वापिस ले लेती है
हर महीने जब प्रकृति का यह तोहफा द्वार खटखाता है
तब योनी गुपचुप एक आतंरिक योग में व्यस्त हो जाती है
अपरिहार्य कारणों से
पीड़ा की इस स्थिति में भी महिलाओं की उँगलियाँ मिली हुई (crossed ) रहती हैं
जिनकी बीच कस कर एक उम्मीद बेपनाह ठाठे मारती है
यो प्रक्रति का पीड़ादायक रुदन
सहज तरीके से सुरक्षित बना रहता है
संसार की हर औरत के पास
जब एक स्त्री पांचवे दिन नहा धो कर
आँगन में चमेली की महक के बराबर खड़ी होती हैं तो
प्रकृति उसका हाथ और भी मजबूती थाम लेती है