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पीड़ा सभ केँ दियौ जराय / एस. मनोज
Kavita Kosh से
जहि पीड़ामे सुबकि रहल छी
हम सभ जन-जन देखू भाय
ओहि पीड़ा क' सभ कियो मिलिकेँ
खोड़ि खाइड़ क' दियौ जराय।
पीड़ा अछि ई निरक्षरता क'
दू आखर क' नहि अछि ज्ञान
जन जन क' आब पढ़ा लिखा क'
एहि कलंक क' दियौ मेटाय
पीड़ा अछि ई बेकारी क'
नून तेल ल' छी फिरिसान
रोजगारक आब सिरजन क' क'
बेकारी क' दियौ भगाय
पीड़ा अछि ई लिंग भेद क'
जन्म सँ पहिने लै अछि प्राण
सृष्टि लेल बेटा-बेटी सम
समतावादी दियौ बनाय
पीड़ा अछि ई जाति धरम क'
राष्ट्रक बनबैत अछि निष्प्राण
जाति धरम उन्मूलन क' क'
नबका दुनिया दियौ बसाय।