भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पीड़ा / आरती 'लोकेश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पीड़ा तुम निज अपनी नितांत,
कुछ मिली प्रभात, कुछ गए निशांत।
कभी उथल-पुथल, अशांत निपट,
तज के न गई तू, चली वृत्तांत।

तम में, रज में, गृह में, वन में,
क्षण भर न छूटा यह संग कालांत।
मैं दूर-दूर भागी, जब छोड़ तुझे,
तू खड़ी समक्ष, मन ले विश्रांत।

पहचान सकी न उस पल को,
मैं तुझसे, तू मुझसे आक्रांत।
वृद्धा मैं, तू मेरा नवयौवन,
बावरी, क्यों साथ चले प्राणांत।

पीड़ा-क्रीड़ा का आवागमन,
क्यों सृष्टि-दृष्टि के दे दृष्टांत।
निष्कपट, अनघ, साथी अविचल,
तेरा अभिनंदन मैं करूँ घटांत।