भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पीपल / कमलेश्वर साहू

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


स्त्री के सिर पर टोकरी थी
पुरूष के कंधे पर फावड़ा-कुदाल
दोनों जिस रास्ते से जा रहे थे
पास ही पीपल का पेड़ था
पीपल का पेड़
उन्हें पुकार रहा था
बुला रहा था
अपनी छाया में
कुछ देर सुस्ताने के लिये
कहना मुश्किल है
उन्होंने पुकार सुनी या नहीं
बस!
दोनों आगे बढ़ गये
पीपल को
कातर व उदास निगाहों से देखते
इस घटना के बाद
कभी किसी ने नहीं सुनी
पीपल की आवाज
या ये भी हो सकता है
कभी किसी को पुकारा ही नहीं
पीपल ने !