भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पीलू तितली / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
और एक दिन पीलू तितली
नहीं गई स्कूल
जैसे ही वह घर से निकली
नन्हे पँख पसारे
एक फूल का बच्चा उसको
रोता मिला किनारे
नीलू ने आंसू देखे तो
वहीं गई सब भूल
रोता बच्चा बोला, मेरा
रंग नहीं चमकीला
मुँह बिचकातीं मुझे देखकर
पिंकी, नीलू, शीला
पीलू ! दोस्त तुम्हारी कहतीं
मुझको नामाकूल
धूल झाड़कर बच्चे को
सिर से उसने नहलाया
और प्यार की ख़ुशबू से
उसके मन को महकाया
खिल-खिलकर हंस रहा अभी तो
छोटा-सा वह फूल