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पी खारा मीठा बरसाना सब के बस की बात नहीं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

पी खारा मीठा बरसाना सब के बस की बात नहीं।
बादल सा सबकुछ दे जाना सब के बस की बात नहीं।

गहराई से वापस आना सबके बस की बात नहीं।
सागर तल से मोती लाना सबके बस की बात नहीं।

कुछ तो है हम में जो मरते दम तक साथ निभाते हैं,
हर दिन रूठा यार मनाना सबके बस की बात नहीं।

जादू है उन की बातों में वरना ख़ुदा कसम मुझसे,
अपनी बातें यूँ मनवाना सबके बस की बात नहीं।

कुछ बातें, कुछ यादें, कुछ पागल लम्हे ही हैं वरना,
जीवन भर मुझको तड़पाना सबके बस की बात नहीं।

आशिक़ ताक रहे दिल थामे लेकिन ज़रा सलीक़े से,
हाल-ए-दिल उन से कह पाना सब के बस की बात नहीं।