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पुकारऽ पुकारऽ हे प्रभु / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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पुकारऽ पुकारऽ हे प्रभु
हमरा के पुकारऽ।
अपना स्निग्ध, शीतल, पवित्र,
आ गहन अंधकार में
हमरा के पुकारऽ।
दिन भर के ग्लानि भरल,
हीन आ ओछ विचार;
उठल हजारन विकार;
ई सब हमरा जीवन के
धूरा-मटी से तोप के
मलिन बना देले बा।
हमरा के एह सब मलिनता से
मुक्त करऽ हे प्रभु, मुक्त करऽ।