Last modified on 11 अप्रैल 2017, at 19:31

पुरबा जे बहै छै झलामलि हे कोसी / अंगिका

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पुरबा जे बहै छै झलामलि हे कोसी,
पछिया बहै छै मधुर ।
अंगना में कुँइयाँ खनाय दियो कोसिका,
बाँटि दियो रेशम के डोर ।
झटपट अंगिया मंगाय दियो कोसिका माय,
भैरव भैया भुखलो न जाय ।
साठी धान कूटि के भतवा रान्हलियै,
मुंगिया दड़रि के कैलो दालि ।
जीमय ले बैठलै भैरव छोटे भइया,
कोसी बहिन बेनिया डोलाय ।
बेनिया डोलावैत बहिनो चुवलै पसीना,
नैन से ढरै मोती लोर ।
जनु कानु जनु खिझु कोसिका हे बहिनो,
तोरो जोकर डोलिया बनाय ।
घर पछुअरवा में बसै छै कहरवा,
कोसी जोकर डोलिया बनाय ।
झलकैत जेती सुसुरारि ।