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पुरबा जे बहै छै झलामलि हे कोसी / अंगिका
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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पुरबा जे बहै छै झलामलि हे कोसी,
पछिया बहै छै मधुर ।
अंगना में कुँइयाँ खनाय दियो कोसिका,
बाँटि दियो रेशम के डोर ।
झटपट अंगिया मंगाय दियो कोसिका माय,
भैरव भैया भुखलो न जाय ।
साठी धान कूटि के भतवा रान्हलियै,
मुंगिया दड़रि के कैलो दालि ।
जीमय ले बैठलै भैरव छोटे भइया,
कोसी बहिन बेनिया डोलाय ।
बेनिया डोलावैत बहिनो चुवलै पसीना,
नैन से ढरै मोती लोर ।
जनु कानु जनु खिझु कोसिका हे बहिनो,
तोरो जोकर डोलिया बनाय ।
घर पछुअरवा में बसै छै कहरवा,
कोसी जोकर डोलिया बनाय ।
झलकैत जेती सुसुरारि ।