पुराना किस्सा है फिर भी नया-नया सा है
ये जख़्मे दिल तो अभी तक हरा-हरा सा है
जिधर भी जाते हो तूफान एक साथ लिये
तुम्हारा होना भी गोया इक बला सा है
मैं उनके ख़्वाब में आया था रात को देखो
तभी तो उनका ये चेहरा खिला-खिला सा है
जमाने भी को जो आँखें दिखाया करता है
न जाने क्यूँ ख़ुद से डरा-डरा सा है
तुम्हारी बात पे ‘इरशाद’ क्या कहूँ बोलो
असर तो उस में है लेकिन ज़रा-ज़रा सा है