मुझे याद है
उन दिनों मैंने एक कागज़ पर लिखा था,
‘घर में सबसे छोटा होना
बहुत बुरा है,
या तो दुलार मिलता है
या दुत्कार।
सम्मान कभी नही मिलता।’
फिर अरसे बाद मैंने
उसी डायरी के
पीले पड़ चुके कागज़ पर लिखा-
‘घर में सबसे बड़ा होना
सबसे बुरा है।
अपेक्षाओं का बोझ
और निर्वाह में चूक का दंड,
कंधे और मन दोनों तोड़ देता है।’
कुछ समय पहले
मैंने दोनों पन्ने फाड़ दिए।
सबसे बुरा है ,
सीने में मन का होना।
और डायरियों को छुपा दिया
कि पुरानी डायरियाँ,
दुःख नए करती हैं।
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