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पुरानी यादें-1 / मनीषा पांडेय
Kavita Kosh से
कहाँ जाती हैं
पुरानी यादें
प्लास्टर झड़ी दीवार की तरह
रहती हैं हर घड़ी आँखों के सामने
छत पर पुराने सीलिंग फैन की तरह
लटकी होती हैं
और घरघराती हैं पूरी रात