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पुराने अनुभव / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
देखो, कोई शोर उठ रहा है
कहीं दूर से उठता हुआ
किसी अंधी परत से निकलता हुआ
उसने एक आकार ले लिया है
स्वरूप बन गया है
मेरे पुराने अनुभवों का
एक ललक मीठी-मीठी
प्रवेश करने लगी है मेरी आँखों में
थिरकने लगा है वो मेरे साथ
सचमुच वो वापस लौट आया है
थोड़ी देर मेरा साथ देने के लिए
यही मेरे लिए उत्सव का वक्त है
खुशियाँ थोड़ी सी चेहरे पर
फिर वापस वैसा का वैसा मैं ।