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पुरूब से आन्हीं भाइल पच्छिम से बरखा / महेन्द्र मिश्र
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पुरूब से आन्हीं भाइल पच्छिम से बरखा
से अंगनवाँ रने-बने लागेला हो लाल।
निहुरी-निहुरी राधा अंगना बहरली
अंचरवा उड़ि-उड़ि जाला हो जाय।
काहे मोरा अंचरा हो उड़ि-उड़ि जालऽ से
कन्हइया मोरा बसे मधुबनवाँ हो लाल।
लोरवा से लिखि-चिठिया भजवनी से
आजु लेना अइलें मोर सजनवाँ हो लाल।
कहत महेन्दर द्विज आउर तनी धरऽ धीर
चढ़ते अगहनवाँ स्याम अइहें हो लाल।