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पुर्नजागरण / नीरजा हेमेन्द्र

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पुनः विगुल बज उठा
झण्डे- बैनरों से पट गया/ वह कस्बा
जहाँ सूर्य उदित होता
मंदिर के घंटे, प्रार्थनाओं,
दुआओं के स्वरों से
मानो तालमेल बिठाता हुआ।
दिन में /पसीने और परिश्रम की गंध
फैल जाती /चतुर्दिक
सूर्यास्त के सुनहरे क्षितिज पर
उड़ते हुए झुंड /श्वेत कपोतों के
शान्ति के गीत गाते हुए
कुशीनगर के हरे वृृक्षों में समा जाते
उनका आगमन !
गेहूँ के लहलहाते खेतों में
 ईंट पत्थरों का पट जाना
ये पसीने में सनी मिट्टी
भूमि में दफन शहीदों के हड्डियों पर
नव निर्माण करेंगे
विध्वंस का,आक्रोश का
बावजूद इसके /कभी तो पौ फटेगा
फैलेगा उजाला।