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पुलिस, नेता और अफसर म्हां, गाढ़ी याड़ी होगी / रामेश्वर गुप्ता

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पुलिस, नेता और अफसर म्हां, गाढ़ी याड़ी होगी
सांझी खेती धोखे की, या आज उघाड़ी होगी
 
निठल्ले बैठे नाके ला कै, कुछ खावैं रोज दलाली
जिसकी आज्या बारी रगडैं, ना घाट किसी नै घाली
सदियां होगी मेहणत कश की, लूट तो न्यंूये चाली
हम ईब भिखमंगे कर दिए, पकड़ा हाथ म्हं टाल्ली
मूछां होगी घणी भारी, उन तै हल्की दाढ़ी होगी
 
हुई औणी-पौणी मजदूरी, दुगणी सै धक्के-शाही
सौ की पर्ची नौ सौ रिश्वत, या कित जा गी भाई
खूब कमा कै भूखे बाळक, बात समझ ना आई
लूटण-आळे साण्ड पळैं, और चाटैं दूध-मळाई
मां-बहाण के तन पै घट कै, आधी साड़ी होगी
 
बेच देई जब वोटां हम नै, या गलती मोट्टी होई
घरां बुला कै आंख दिखावैं, नीयत खोट्टी होई
पांच साल तक नेता के, हाथां म्हां चोट्टी होई
न्यारे-न्यारे पाट गए हम, म्हारी बोट्टी बोट्टी होई
रखवाळी बैठी थी बिल्ली, घी की लाड़ी होगी
 
कैसे हो फसल सवाई, जब बाड़ खेत नै खा री
किस पै करैं यकीन, आज नहीं समझ म्हं आ री
जयचंदों की बस्ती म्हं, या शामत आ गी म्हारी
धरी-धराई रह गी रै, ‘रामेश्वर‘ तेरी हुशियारी
कल्ले-कल्ले पिट रे, म्हारी सोच अनाड़ी होगी