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पुल-सिरात / परवीन फ़ना सय्यद
Kavita Kosh से
तुम्हारा दिल
तजल्लियों के तूर की ज़िया से
आगही तलक
रियाज़तों के नूर में गुँधा हुआ
अमानतों के बार से दबा हुआ
तुम्हारी रूह के लतीफ़ आईने में
अपना अक्स ढूँडने
अक़ीदतों की गर्द से अटी हुई
अना के पुल-सिरात से ग़ुज़र के आ रही हूँ मैं