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Kavita Kosh से
दूर
बहुत दूर
सुनाई दे रही
ख़ुश्बू की आहट
पास
बहुत पास
भटकती है
गुलमोहरी कसक
दूरी और सामीप्य में
लहरा रहा है
एक क्षण।