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पुस्तक समीक्षा / सिद्धेश्वर सिंह
Kavita Kosh से
काग़ज़ -
उजला चमकीला
मुलायम सुचिक्कण
छपाई -
अच्छी पठनीय
फ़ाँट-सुंदर
आवरण -
बढ़िया शानदार
कलात्मक आकर्षक
आकार -
डिमाई क्राउन रायल जेबी
(चाहे जो समझ लें)
कीमत -
थोड़ी अधिक
( क्या करें इस महँगाई का
वैसे भी,
बिकती कहाँ हैं हि्न्दी की क़िताबें )
पुरस्कार -
लगभग तय
( जय जय जय )
अख़बारों में बची नहीं जगह
पत्रिकाओं में शेष हैं इक्का - दुक्का पृष्ठ
सुना है ब्लाग भी कोई जगह है
( विस्तार के भय से
वहाँ का हाल -चाल फिर कभी ।)
साहित्य के मर्मज्ञ पाठकवॄंद
अब आप ही बताएँ
एक अदद क़ितबिया पर
आख़िरकार कितना लिखा जाय !
अत:
अस्तु
अतएव -
इति समीक्षा ।