भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पूछिए मिरे दिल से इन्तज़ार का आलम / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूछिए मिरे दिल से इन्तिज़ार का आलम
बेबसी उमीदों की, याद-ए-यार का आलम!

दिल तो एक नादां है कोई क्या सुने इस की?
कू-ए-ग़म में ढूँढे है ये क़रार का आलम!

शीशा-ए-अना मेरा, संग-ए-आस्तां तेरा
याद है मुझे अबतक अपनी हार का आलम!

सब पलट गई बाज़ी कारगाह-ए-हस्ती की
आगही में पिन्हां था इन्तिशार का आलम!

ज़ख़्म मेरी क़िस्मत थे दर्द भी मुक़्ददर था
और मुझ पे तारी था ख़्वाब-ज़ार का आलम!

बेख़ुदी ने नज़रों से वो हिजाब उठायें हैं
हर तरफ़ फ़िरोज़ां है हुस्न-ए-यार का आलम!

याद के दरीचों से बू-ए-यार आई है!
मौसम-ए-ख़िज़ां में है इक बहार का आलम!

मंज़िल-ए-मुहब्बत में काम आ गया "सरवर"
पूछते हो क्या अपने जाँ-निसार का आलम!