पूछ मत मुझसे कि क्या कैसा हुआ	
जो हुआ जैसा हुआ अच्छा हुआ 
मै भरोसा ले गया बाजार में	
मुझको हर व्यापार में घाटा हुआ
जाने कब लौटेगा अपनी राह पर
आदमी है देवता भट्का हुआ
भूल जाता हू मैं अपने गम सभी
देखता हू जब तुझॆ हन्सता हुआ	
मानता हू जीत मैं पाया नहीं	
मत समझ लेकिन मुझे हारा हुआ	
जो अलमबर्दार आजादी का है	
खुद वही बन्धन में है जकडा हुआ	
प्यार का सूरज न जाने कब उगे
नफ़रतों का हर तरफ़ कुहरा हुआ