पूजनीय भारत के नेता समदर्शी होए ब्रह्म्ज्ञानी / मुंशीराम जांडली
पूजनीय भारत के नेता समदर्शी होए ब्रह्म्ज्ञानी
जात माणस की एक कहैं क्यूं भींट करो हिन्दुस्तानी
देशी खाण्ड बिदेशी घी और सब नै बिस्कुट खाए तम्हें
होए सवार रेल मोटर मैं औड़ै भिटण ना पाए तम्हें
नल का पाणी पिया मजे मैं क्यूं ना मरे तिसाए तम्हें
कट्ठा काम करया खेतां मैं दस दिन तक ना नहाए तम्हें
गाळ गळी मैं पल्ला लागै नहाएं सुधरै जिंदगानी
मेले के मैं धक्कम धक्का औड़ै भींट क्यूं ना मानी
उड़द चावळ और मूंग भिंटै ना, रंदती दाळ भिंटै थारी
गुड़ शक्कर घी खाण्ड भिंटै ना, रगड़ी मिर्च भिंटै थारी
चादर दोहर खेस भिंटज्या, ना बांधी पांड भिंटै भारी
काचा कोरा थान भिंटै ना, भिंटै पुराणी बेमारी
जोहड़ा जोहड़ी नदी भिंटै ना, कुंआ भिंटै बड़ी नादानी
गाय भैंस बकरी भिंटती ना, दूध भिंटै घल के पानी
सोंए बैठे खाट भिंटै, ना भिंटती सिर पै ठायां तै
सिर बुक्कळ मैं ना भिंटै बिस्तरा, भिंटज्या तुरंत बिछायां तै
बरी बाल्टी डोल भिंटै ना, घड़िया भिंटै चकायां तै
कुत्यां तक की झूठ नहीं, भिंटै हाथ माणस कै लायां तै
सौ सौ गाळ बकै मूरख जद भंगी जा चुल्हे कानी
चुहड़ी चमारी फिरै सुपे मैं बेमाता दाई जानी
गाजर मूळी गंठे काकड़ी चुहड्यां पै मंगवाओ सो
आलू गोभी मटर टमाटर अरबी शलगम खाओ सो
सेब संतरे आम नारियल हथो हथी ले आओ सो
सारी चीज भिंटण आळी तुम कोन्या भिंटी बताओ सो
एक्का मेल मिलाप करो गुरु हरिचन्द रह सैलानी
कहै मुन्शीराम जांडली आळी काढो दिल की बेईमानी