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पूठी आय जा मां / सुनील गज्जाणी
Kavita Kosh से
म्हारी गीली आंख्यां हरेक पल थनैं जोवै
सून्य नैं घूरती म्हारी निजरां
थारी ओळूं लावै अर
म्हारै मनड़ै नैं हींडा देवै
ठाह है म्हनैं कै
तूं है म्हारै एड़ै-गेड़ै ई
पण जीवड़ो अमूझतो रैवै
थारी ओळूं में
आंख्यां आली
मन सूखो-सूखो
नीं सैय सकूं बिछोह
घर लागै उजाड़ खेत ज्यूं
ए मां! तूं पूठी आय जा
मां, याद आवै म्हारै बालपणै री
याद आवै गोदी मांय तूं आपरै ओढणै सूं
म्हारै सागै हैस-पैस रमती
मां, तूं म्हनैं म्हारै बालपणै री और बातां बता
एकर छाती सूं चेप फेरूं लाड लडा
पूठी आय जा मां
तूं तो जननी है सिस्टी री
फेर कांई तीरथ है?