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पूरनिया / हरीश भादानी

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पूरनिया
समुंदर के मुहाने
एक नन्हें शिशु को जन्म देने
जिजीविषाएँ ?
टीसती हैं रात भर तो टीस लेने दो उन्हें,
गुम-सुम
टहनियों की गुँडेरों से उठे
वन पाखियों के स्वर सरीखी साँस
जो बुनने लगे
झीनी हवा का एक कुर्त्ता
एक टोपी बुनने दो उसे
वीथियाँ धोती
खुले आँचल पिलाती दूध,
धूप सी आँखें
पसरती जायँ आगे तो पसरने दो उन्हें-
कुआँरे बाप सा भीरू अँधेरा
कहीं सूरजमूखी सान्दर्भ की हत्या न कर दे !