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पूरी कहो कहानी / कमलेश द्विवेदी

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कुछ कहता है चित्र तुम्हारा कुछ तुम कहो ज़ुबानी।
कुछ न छिपाकर रक्खो दिल में पूरी कहो कहानी।

ग़म को अगर छिपाओगे तो
वो तुमको ग़म देगा।
जब तक नहीं कहोगे, भीतर
ही भीतर काटेगा।
इसीलिए कह दो तुम हमसे करो न आनाकानी।
कुछ न छिपाकर रक्खो दिल में पूरी कहो कहानी।

ख़ुशी छिपाओगे तो पूरी
ख़ुशी न मिल पायेगी।
साथ हमारे बाँटोगे तो
दूनी हो जाएगी
हमीं न कहते बड़े-बड़ों ने की है यही बयानी।
कुछ न छिपाकर रक्खो दिल में पूरी कहो कहानी।

ख़ुशी मिले तो बनें न पागल
ग़म धीरज से काटें।
अपनों के सँग अपने सुख-दुख
पूरे मन से बाँटें।
जीवन को जीने में होगी तभी हमें आसानी।
कुछ न छिपाकर रक्खो दिल में पूरी कहो कहानी।